घरेलू काम के लिए मजदूरी -सेलविया फेडरिकी





They say it is love. We say it is unwaged work.

वे कहते हैं कि यह प्यार है। हम कहते हैं कि यह बेगार है।

They call it frigidity. We call it absenteeism.

वे इसे ठंडापन कहते हैं। हम इसे काम से अनुपस्थित होना कहते हैं।

Every miscarriage is a work accident.

हर गर्भपात एक काम पर हुई दुर्घटना है।

Homosexuality and heterosexuality are both working conditions...but homosexuality is workers' control of production, not the end of work.

समलैंगिकता और विषमलैंगिकता दोनों काम करने की स्थितियां हैं...लेकिन समलैंगिकता श्रमिकों का उत्पादन पर नियंत्रण हैपर काम का अंत नहीं।

More smiles? More money. Nothing will be so powerful in destroying the healing virtues of a smile.

अधिक मुस्कानअधिक पैसे। मुस्कान के उपचार गुणों को नष्ट करने में इतना शक्तिशाली कुछ भी नहीं होगा।       

Neuroses, suicides, desexualization: occupational diseases of the housewife.

महिलाओं में न्यूरोसिसआत्महत्याअलैंगिकीकरण जैसे रोग उनके  घरेलू काम से उत्पन्न रोग।

 

    महिलायें घरेलू काम के लिए मजदूरी पर चर्चा करने में हमेशा जिन कठिनाइयों और अस्पष्टताओं को व्यक्त करती हैंवह इस सच्चाई से उत्पन्न होती हैं कि वे इसे राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में नहीं देखती हैंबल्कि घरेलू काम के लिए मजदूरी को एक वस्तु या कुछ पैसे तक ही सीमित कर देती है। इन दोनों दृष्टिकोणों में बहुत बड़ा अंतर है। घर के काम के लिए मजदूरी को एक परिप्रेक्ष्य के बजाय एक वस्तु के रूप में देखना हमारे संघर्ष के अंतिम परिणाम को संघर्ष से ही अलग करना है और पूंजीवादी समाज में महिलाओं को जिस भूमिका तक सीमित रखा गया हैउसके रहस्य को उजागर करने और उसे उलटने के महत्व को खो देना है।

जब हम घरेलू काम के लिए मजदूरी को इस सीमित तरीके से देखते हैं तब हम खुद से पूछना शुरू करते हैं: कुछ और पैसे हमारे जीवन में क्या अंतर ला सकते हैंहम इस बात से सहमत हो सकते हैं कि उन महिलाओं के लिए जिनके पास घरेलू काम और शादी के अलावा कोई विकल्प नहीं हैयह वास्तव में बहुत अंतर पैदा करेगा। लेकिन हममें से वे जिनके पास अन्य विकल्प हैं जैसे पेशेवर काम,प्रबुद्ध पतिसाम्यवादी जीवन शैलीसमलैंगिक संबंध या ये सभी है- इससे कोई खास अंतर नहीं पड़ेगा। हमारे लिए आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के अनेक रास्ते हो सकते हैंऔर एक घरेलू महिला के रूप में इसे पाना हमारे लिए आखरी रास्ता है; एक ऐसी नियति जो मौत से भी बदत्तर है। इस दृष्टिकोण के साथ दिक्कत यह है कि हम अपनी कल्पना में आज के बदतर जीवन में कुछ और पैसे जोड़ लेते हैं और फिर पूछते हैं, इससे क्या? इस गलत आधार पर कि हमें अपने परिवार और सामाजिक सबंधों को उसी समय क्रांतिकारी तरीके (इसके लिए संघर्ष की प्रक्रिया में) से बिना बदले ये पैसे कभी मिल पायेंगे। लेकिन अगर हम घरेलू काम के लिए मजदूरी को राजनीतिक परिपेक्ष्य में देखें तो हम देख सकते हैं कि इसके लिए संघर्ष करना हमारे जीवन में और नारी के रूप में हमारी सामाजिक शक्ति में क्रांति पैदा करने वाला होगा। यह भी स्पष्ट है कि यदि हम यह सोचते हैं कि हमें उस धन की 'आवश्यकतानहीं हैतो इसका कारण यह है कि हमने शरीर और मन की वेश्यावृत्ति के उन विशेष रूपों को स्वीकार कर लिया है जिससे हमें उस आवश्यकता को छिपाने के लिए धन प्राप्त होता है। जैसा कि मैं दिखाने की कोशिश करूँगीन केवल घरेलू काम के लिए मजदूरी एक क्रांतिकारी परिप्रेक्ष्य हैबल्कि नारीवादी दृष्टिकोण से और अंततः पूरे मजदूर वर्ग के लिए यह एकमात्र क्रांतिकारी दृष्टिकोण है।

 

प्यार का श्रम

यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि जब हम घर के काम की बात करते हैं तो हम अन्य कामों की तरह के किसी काम की बात नहीं कर रहे हैंबल्कि हम एक व्यापक चालाकी, हिंसा के सबसे जटिल और रहस्यम रूप के बारे में बात कर रहे हैं जिसका प्रयोग पूंजीवाद ने समाज के किसी भी कामगार वर्ग के खिलाफ किया है। यह सच है कि पूंजीवाद के तहत हर श्रमिक के साथ छल और शोषण होता है और पूंजी से उसका संबंध पूरी तरह से रहस्यमय होता है। वेतन एक उचित सौदे का आभास देता है: आप काम करते हैं और आपको भुगतान मिलता हैइसलिए मजदूर और मालिक  समान हैंजबकि वास्तव में वेतनआपके द्वारा किए गए काम के लिए भुगतान करने के बजायउन सभी कामों को छुपती है जो मुनाफा पैदा करती हैं।  लेकिन वेतन मिलने से कमसेकम मजदूर होने की पहचान मिलती है, और आप काम, वेतन और उसकी शर्तों, के लिए और उसके  खिलाफ सौदेबाजी और संघर्ष कर सकते हैं। वेतन पाने का मतलब एक सामाजिक समझौते का हिस्सा होना हैऔर जिसका निस्संदेह यह अर्थ है कि आप काम करते हैं,  इसलिए नहीं कि आप इसे पसंद करते हैंया इसलिए कि यह आपके लिए नैसर्गिक हैबल्कि इसलिए कि यही एकमात्र शर्त है जिससे आप जिंदा रह सकते हैं। चाहे आप जितना भी शोषित हों, आप स्वयं वह काम नहीं हैं।  आज आप पोस्टमैन हैंकल कैब ड्राइवर। मायने यह रखता है कि आपको उस काम में से कितना करना है और उसमे से आपको कितना पैसा मिल सकता है।

लेकिन घरेलू कामकाज के मामले में स्थिति गुणात्मक रूप से भिन्न है। अंतर इस तथ्य में निहित है कि न केवल घरेलू कामकाज महिलाओं पर थोपा गया हैबल्कि घरेलू कामकाज को महिलाओं के नैसर्गिक गुण में तब्दील कर दिया गया हैएक आंतरिक जरूरत और आकांक्षा के रूप मेंजो कथित तौर पर हमारे महिला चरित्र से ही आती है। पूंजी को, घर के काम को एक सामाजिक समझौते के रूप में मान्यता देने के बजाय महिलाओं की एक प्राकृतिक विशेषता में बदलना पड़ा क्योंकि शुरुआत से ही उसकी योजना थी की महिलाओं से घरेलू काम को बिना मेहनताने के करवाया जाये। पूँजी को बिना मेहनताने के घरेलू काम को स्वीकार करवाने के लिए हमें यह विश्वास दिलाना पड़ा कि हमारे लिए घरेलू काम एक स्वाभाविकअपरिहार्य और एक ऐसा काम है जो हमारे व्यक्तित्व को पूरा करता है। इसके बदले में, हमारा बिना मजदूरी के घरेलू काम को करना इस धारणा को पुष्ट करने में सबसे शक्तिशाली हथियार साबित हुआ कि घरेलू काम काम नहीं है, जिससे महिलाओं को अपने किचन और बेडरूम के झगड़े को छोड़कर इसके खिलाफ संघर्ष करने से रोका जा सके, जिसका मजाक उड़ाने में पूरे समाज की आपसी सहमति है, जिससे सघर्ष के अगुवों को सीमित किया जा सके। हमें झगड़ालू कुतिया के रूप में देखा जाता हैसंघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं के रूप में नहीं।

फिर भी एक गृहिणी होना कितना स्वाभाविक हैइस तथ्य से पता चलता है कि एक महिला को इस भूमिका के लिए तैयार करने के लिएएक बेगार माँ के द्वारा उसे यह समझाने के लिए कम से कम बीस साल का समाजीकरण और दैनिक प्रशिक्षण लगता है  कि बच्चे और पति सबसे बड़ी उपलब्धि हैं जिसकी वह जीवन से अपेक्षा कर सकती है। फिर भीयह शायद ही सफल होता है। चाहे हम कितने भी प्रशिक्षित होंकम ही ऐसी महिलाएं होती हैं जो शादी की रात खत्म होने पर खुद को एक गंदे सिंक के सामने पाती हैं और खुद को ठगा हुआ महसूस नहीं करती हैं। हममें से बहुतों को अभी भी यह भ्रम है कि हम प्यार के लिए शादी करते हैं। हम में से बहुत से लोग मानते हैं कि हम पैसे और सुरक्षा के लिए शादी करते हैंलेकिन यह स्पष्ट करने का समय आ गया है कि इसमें शामिल प्यार या पैसा बहुत कम हैलेकिन जो काम है वह इसके मुकाबले बहुत ज्यादा है। यही कारण है कि बूढ़ी औरतें हमेशा हमसे कहती हैं 'जब तक हो सके अपनी आजादी का आनंद लोअभी जो चाहो खरीद लो...' लेकिन दुर्भाग्य से किसी भी आजादी का आनंद लेना लगभग असंभव है अगर जीवन के शुरुआती दिनों से ही आपको विनम्र, अधीन और निर्भर रहने के लिए और सबसे महत्वपूर्ण खुद का त्याग करने  और यहाँ तक कि इससे सुख पाने के लिए भी प्रशिक्षित किया जाता है। यदि आप इसे पसंद नहीं करते हैंतो यह आपकी समस्या हैआपकी असफलताआपका अपराधबोधआपका पागलपन है।

           हमें यह स्वीकार करना होगा कि पूंजी हमारे काम को छुपाने में बहुत सफल रही है। इसने महिलाओं की कीमत पर एक सच्ची कृति बनाई है। घर के काम-काज को मजदूरी न देकर और उसे प्रेम की क्रिया में बदलकर पूंजी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। सबसे पहले, इसे लगभग मुफ्त में बहुत सारा काम मिला है, और इसने यह सुनिश्चित किया है कि महिलाएं, इसके खिलाफ संघर्ष करने के बजाय, उस काम को जीवन में सबसे अच्छी चीज के रूप में तलाशेंगी (जुमले: "हाँ, डार्लिंग, तुम एक सच्ची महिला हो";“Yes, darling you are a real woman”)। साथ ही 'अपनी' स्त्री को उसके काम और उसकी मजदूरी पर आश्रित बनाकर पुरुष-कर्मचारी को भी अनुशासित किया है और स्वयं कारखाने में इतनी सेवा करने के बाद नौकर देकर उसे इस अनुशासन में फँसाया है। वास्तव में, महिलाओं के रूप में हमारी भूमिका 'मज़दूर वर्ग' के बेगार लेकिन खुश, और सबसे अधिक प्यार करने वाले नौकरों की है, यानी सर्वहारा वर्ग के वे वर्ग जिन्हें पूंजी को अधिक सामाजिक शक्ति देने के लिए मजबूर किया गया था। जिस तरह ईश्वर ने ईव को आदम को खुश करने के लिए बनाया था, उसी तरह पूँजी ने गृहिणी को पुरुष मजदूरों की शारीरिक, भावनात्मक और यौन सेवा करने के लिए बनाया ताकि वह अपने बच्चों को पाल सके, उसके मोज़े ठीक कर सके, जब वह काम पर कुचला जाये तो उसके अहंकार को दूर कर सके। और सामाजिक रिश्ते (जो अकेलेपन के रिश्ते हैं) जो पूंजी ने उसके लिए आरक्षित रखे हैं। यह शारीरिक, भावनात्मक और यौन सेवाओं का एक  अजीबोगरीब संयोजन है जो उस भूमिका में शामिल है जिसे महिलाओं को पूंजी के लिए करना होगा, जो उस नौकर के विशिष्ट चरित्र का निर्माण करती है जो कि गृहिणी है,  जो एक ही समय में उसके काम को इतना बोझिल और अदृश्य बना देती है। यह कोई संयोग नहीं है कि ज्यादातर पुरुष अपनी पहली नौकरी मिलते ही शादी करने के बारे में सोचने लगते हैं। यह केवल इसलिए नहीं है क्योंकि अब वे इसे वहन कर सकते हैं, बल्कि इसलिए कि असेंबली लाइन या डेस्क पर बिताए एक दिन के बाद घर पर कोई है जो आपकी देखभाल करता है, जो एकमात्र स्थिति है जिससे आप  पागल होने से बचे रहते हैं । हर महिला जानती है कि एक सच्ची महिला होने और एक 'सफल' शादी करने के लिए उसे यही करना चाहिए। और इस मामले में भी, परिवार जितना गरीब होता है, महिला की गुलामी उतनी ही अधिक होती है, और ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ उसकी आर्थिक स्थिति के कारण होता है। वास्तव में पूंजी की दोहरी नीति होती है, एक-मध्यम वर्गीय परिवार के लिए और दूसरी-सर्वहारा परिवार के लिए। यह महज संयोग नहीं है कि हमें  सबसे भोंडी मर्दानगी मजदूर वर्गीय परिवार में देखने को मिलती हैं। आदमी काम पर जितना अधिक प्रताड़ित होगा , उतना ही उसकी पत्नी को उसे सहने के लिए तैयार होना होगा और उतना ही आदमी को अपनी पत्नी की कीमत पर अपने अहंकार को फिर से हासिल करने दिया जायेगा। जब आप अपने काम से निराश या थके हुए होते हैं या जब आप संघर्ष में हार जाते हैं तब आप अपनी पत्नी को पीटते हैं और उसपर अपना गुस्सा निकालते हैं (कारखाने में जाना अपने आप में एक हार है)। पुरुष जितना अधिक काम करता है और चारों ओर से  दबाया जाता है उतना ही अधिक वह दूसरों को दबाता है। पुरुष का घर उसका गढ़ होता है ... और उसकी पत्नी को उसके मूडी होने पर चुप रहकर इंतजार करना सीखना होता है, जब वह टूट जाता है और दुनिया पर झुँझलाता है, तो उसे वापस से संभालना पड़ता है और जब वह कहता है 'मैं आज रात बहुत थक गया हूँ’, तो बिस्तर पर दूसरी ओर मुड़ना पड़ता है या जब वह संभोग में इतनी  हड़बड़ी में होता है कि  एक महिला के अनुसार वह अपना काम मेयोनेज़ जार से भी चला सकता है। (हालांकि महिलाओं ने हमेशा से लड़ने या वापस तालमेल का तरीका निकाला है लेकिन हमेशा अकेले और निजी रूप में ही, लेकिन समस्या यह है कि इस संघर्ष को किचन  और बेडरूम से बाहर सड़कों पर कैसे उतारा जाए।)

              प्रेम और विवाह के नाम पर चलने वाला यह धोखा हम सभी को प्रभावित करता हैभले ही हम शादीशुदा न होंक्योंकि एक बार जब घरेलू काम पूरी तरह से स्वाभाविक और यौनपरक हो गयावह स्त्रीत्व का लक्षण बन गया, महिलाओं के रूप में हम सब इसी से चरित्रांकित होते हैं। अगर कुछ खास काम करना स्वाभाविक हैतब सभी महिलाओं से- यहाँ तक कि उन महिलाओं (जिनके पति नौकरानियों और आया या मनोरंजन और मनबहलाव के दूसरे साधनों का खर्च उठा सकते हैं) से भी जो अपनी सामाजिक स्थिति के कारण इनमें से कुछ या ज्यादातर कामों से बच सकती हैं, यह आशा की जाती है कि न केवल वे इन्हें करें बल्कि इसे करना पसंद भी करें। हम भले ही किसी एक पुरुष की सेवा न करेंलेकिन हम सभी पूरे पुरुष  समाज के साथ एक दास संबंध में हैं। यही कारण है कि महिला कहलाना इतनी नीच और  अपमानजनक बात है। ("थोड़ा मुस्कुराओयारतुम्हारे साथ क्या हुआ है?" ऐसा कुछ है जो हर आदमी आपसे यह पूछने का हकदार महसूस करता हैचाहे वह आपका पति होया वह आदमी जो ट्रेन में आपका टिकट देखता हैया काम पर आपका बॉस हो।)

 

क्रांतिकारी दृष्टिकोण

यदि हम इस विश्लेषण से शुरुआत करें तो हम घरेलू कामकाज के लिए मजदूरी की मांग के क्रांतिकारी निहितार्थों को देख सकते हैं। यह वह मांग है जिसके द्वारा हमारी प्रकृति समाप्त होती है और हमारा संघर्ष शुरू होता है क्योंकि केवल घरेलू काम के लिए मजदूरी चाहने का मतलब उस काम को अपनी प्रकृति की अभिव्यक्ति के रूप में अस्वीकार करना हैऔर इसलिए पूंजी के द्वारा हमारे लिए आविष्कार की गई महिला भूमिका को निश्चित रूप से अस्वीकार करना है।

घर के काम के लिए मजदूरी मांगने से समाज की हमसे जो अपेक्षाएं हैंवे अपने आप कम हो जाएंगीक्योंकि ये अपेक्षाएं जो हमारे समाजीकरण का सार हैं, घर में हमारी बेगारी की स्थिति के लिए काम करती हैं। इस अर्थ मेंमेहनताने के लिए महिलाओं के संघर्ष की तुलना अधिक मेहनताने के लिए कारखाने में पुरुष श्रमिकों के संघर्ष से करना बेतुका है। अधिक वेतन के लिए संघर्षरत उजरती मजदूर अपनी सामाजिक भूमिका को चुनौती देता है लेकिन उसके भीतर ही रहता है। जब हम मजदूरी के लिए संघर्ष करते हैं तो हम स्पष्ट रूप से और सीधे तौर पर अपनी सामाजिक भूमिका के खिलाफ संघर्ष करते हैं। इसी प्रकार वेतनभोगी मजदूर के संघर्ष और उस गुलामी के खिलाफ मजदूरी के लिए गुलाम के संघर्ष में गुणात्मक अंतर है। हालांकियह स्पष्ट होना चाहिए कि जब हम मजदूरी के लिए संघर्ष करते हैं तो हम पूंजीवादी संबंधों में प्रवेश करने के लिए संघर्ष नहीं करते हैंक्योंकि हम उससे कभी बाहर नहीं हैं। हम महिलाओं के लिए पूंजी की योजना को तोड़ने के लिए संघर्ष करते हैंजो मजदूर वर्ग के भीतर विभाजन का एक अनिवार्य क्षण हैजिसके माध्यम से पूंजी अपनी शक्ति बनाए रखने में सक्षम रही है। इसलिएघरेलू काम के लिए मजदूरी एक क्रांतिकारी मांग इसलिए नहीं है क्योंकि यह अपने आप पूंजी को नष्ट कर देती हैबल्कि इसलिए कि यह पूंजी को सामाजिक संबंधों को हमारे लिए अधिक अनुकूल और परिणामस्वरूप वर्ग की एकता के लिए अधिक अनुकूल बनाने के लिए मजबूर करती है। वास्तव मेंघर के काम के लिए मजदूरी की मांग करने का मतलब यह नहीं है कि अगर हमें भुगतान किया जाता है तो हम इसे करना जारी रखेंगे। इसका मतलब ठीक 'विपरीतहै। यह कहना कि हमें घर के काम के लिए पैसा चाहिएइसे करने से इंकार करने की दिशा में पहला कदम हैक्योंकि मजदूरी की मांग हमारे काम करने को दर्शाती हैजो कि इसके खिलाफ संघर्ष शुरू करने के लिए सबसे अनिवार्य शर्त हैघरेलू कामकाज और स्त्रीत्व के रूप में इसका अधिक कपटी चरित्र दोनों ही तात्कालिक पहलू हैं।

अर्थवाद के किसी भी आरोप के खिलाफ हमें यह याद रखना चाहिए कि पैसा पूंजी हैयानी यह श्रम को नियंत्रित करने की शक्ति है। इसलिए जो हमारे और हमारी माताओं और दादी-नानी के श्रम का फल है उस धन को फिर से विनियोजित करने का अर्थ है उसी समय पूंजी की शक्ति को कम करना जो हमें जबरन श्रम का आदेश देता है। और वेतन की शक्ति को जो हमें अपने नारीत्व ( जो कि काम है) को विरहस्यकृत करने और हमारे काम को दिखाने का काम करता है, इसे नजरंदाज नहीं करना चाहिए। चूँकि वेतन का ना मिलना इस भूमिका को आकार देने और हमारे काम को छिपाने में बहुत शक्तिशाली रहा है। घर के काम के लिए मजदूरी की मांग करना यह दिखाना है कि हमारे दिमागशरीर और भावनाओं को एक विशिष्ट कार्य के लिए विशिष्ट तरीके से विकृत कर दिया गया हैऔर  एक आदर्श रूप को हम पर थोप दिया गया हैजिसके अनुरूप हम सभी को होना चाहिए यदि हम इस समाज में महिलाओं के रूप में स्वीकार किया जाना चाहते हैं।

यह कहना कि हम घर के काम के लिए मजदूरी चाहते हैंइस तथ्य को उजागर करना है कि घर का काम पहले से ही पूंजी के लिए पैसा हैपूंजी ने हमारे खाना पकानेमुस्कुरानेयौन उपभोग से  पैसा बनाया है। साथ हीयह दिखाता है कि हमने सालों खाना बनायामुस्कुराया और उपभोग करवायाइसलिए नहीं कि यह हमारे लिए किसी और की तुलना में आसान थाबल्कि इसलिए कि हमारे पास और कोई विकल्प नहीं था। इतनी मुस्कराहट से हमारे चेहरे विकृत हो गए हैंइतने प्यार से हमारी भावनाएँ खत्म हो गई हैंहमारे अति यौन उपभोग ने हमें अपनी यौनिकता से पूरी तरह से उदासीन कर दिया है।

घर के काम के लिए मजदूरी केवल शुरुआत हैलेकिन इसका संदेश स्पष्ट है: अब से उन्हें हमें भुगतान करना होगा क्योंकि महिलाओं के रूप में हम अब कुछ भी की गारंटी नहीं देते हैं। हम काम को काम का नाम देना चाहते हैं ताकि अंततः हम फिर से तलाश सकें कि प्यार क्या है और हमारी यौनिकता क्या होगी जिसे हम कभी नहीं जान पाये हैं। और मजदूरी की दृष्टि से हम सिर्फ एक वेतन नहीं बल्कि कई वेतनों की मांग कर सकते हैंक्योंकि हमें एक साथ कई काम करने के लिए मजबूर किया गया है। मातृ दिवस के दिन हमारे जिस वीरांगना की छवि की महिमा गायी जाती है उसका सार यही है कि हम दासियाँ हैंवेश्याएँ हैंनर्स हैं और आया हैं। हम कहते हैं: हमारे शोषणहमारी तथाकथित महिमा का गुणगान बंद करो। अब से हम इसके प्रत्येक क्षण के लिए पैसा चाहते हैंताकि हम इसमें से कुछ को और अंतत: सभी को नकार सकें। इस परिप्रेक्ष्य में यह दिखाने से ज्यादा प्रभावी कुछ नहीं हो सकता है कि हमारे स्त्री गुणों के नाम पर हमारे हर क्षण का पैसा में एक मूल्य है, उसे वह बढ़ाता रहा है और जिसे आज तक केवल पूंजी ने अपने लिए इस्तेमाल किया हैजिससे हम हारते रहे हैंआज के बाद हम इसी हिसाब को अपनी शक्ति को संगठित करने में पूंजी के खिलाफ इस्तेमाल करेंगे।

 

सामाजिक सुविधाओं के लिए संघर्ष 

यह सबसे कट्टरपंथी दृष्टिकोण है जिसे हम अपना सकते हैं क्योंकि यद्यपि हम सब कुछ मांग सकते हैंडे केयरसमान वेतनमुफ्त लॉन्ड्रोमैटलेकिन  हम कभी भी कोई वास्तविक परिवर्तन हासिल नहीं कर पाएंगे जब तक कि हम अपनी महिला भूमिका की जड़ों पर हमला नहीं करते हैं। सामाजिक सेवाओं के लिए हमारा संघर्षयानी काम करने की बेहतर परिस्थितियों के लिए हमें हमेशा निराशा मिलेगी अगर हम पहले यह स्थापित नहीं करते हैं कि हमारा काम काम है। जब तक हम इसकी समग्रता के विरुद्ध संघर्ष नहीं करतेतब तक हम इसके किसी भी क्षण के संबंध में कभी भी जीत हासिल नहीं कर पाएंगे। हम मुफ्त लॉन्ड्रोमैटस(सार्वजनिक वाशिंग मशीन) के लिए संघर्ष में तब तक असफल रहेंगे जब तक हम पहले इस तथ्य के खिलाफ संघर्ष नहीं करते कि हम अंतहीन काम की कीमत के अलावा प्यार नहीं कर सकते हैंजो दिन-ब-दिन हमारे शरीरहमारी यौनिकताहमारे सामाजिक संबंधों को पंगु बना देती हैजब तक कि हम पहले ब्लैकमेल से बच नहीं जाते जिससे हमारी स्नेह देने और प्राप्त करने की आवश्यकता एक कार्य कर्तव्य के रूप में हमारे खिलाफ हो जाती है जिसके लिए हम लगातार अपने पतियोंबच्चों और दोस्तों के प्रति नाराजगी महसूस करते हैं और उस नाराजगी के लिए खुद को ही दोषी मानते हैं। घरेलू काम के अलावा नौकरी मिलने से वह भूमिका नहीं बदलती हैजैसा कि सालों-साल घर के बाहर महिलाओं का काम करना इस बात का अभी भी गवाह है। घरेलू काम के अलावा दूसरा काम न केवल हमारे शोषण को बढ़ाता हैबल्कि विभिन्न रूपों में हमारी भूमिका को पुन: उत्पन्न करता है। जहाँ कहीं भी हम देखते हैंहम पाते हैं कि महिलाएं जो काम करती हैंवे सभी निहितार्थों में गृहिणी की स्थिति का विस्तार मात्र ही है। हम न केवल  नर्सनौकरानीशिक्षक  सचिव बन जाते हैं- वे सभी कार्य जिनके लिए हम घर में ही अच्छी तरह से प्रशिक्षित होते हैं- बल्कि हम उसी बंधन में हैं जो घर में हमारे संघर्ष को रोकती है: जैसे एकाकीपन: यह बात कि अन्य लोगों की जिंदगियाँ हम पर निर्भर हैं, या यह दिखना लगभग असंभव हो जाता है कि  हमारा काम कहाँ शुरू होता है और कहाँ समाप्त होता है, हमारा काम कहाँ समाप्त होता है और हमारी इच्छाएँ कहाँ शुरू होती हैं। क्या अपने बॉस के लिए कॉफी लाना और उनके साथ उनकी वैवाहिक समस्याओं के बारे में बात करना दफ्तरी काम है या यह एक व्यक्तिगत एहसान हैक्या यह तथ्य कि हमें काम पर अपने रूप-रंग के बारे में चिंता करनी पड़ती हैकाम की स्थिति है या इसका कारण महिलाओं की अपनी साजसज्जा है? (हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका में एयरलाइन परिचारिकाओं को समय-समय पर तौला जाता था और लगातार एक निश्चित आहार पर रहना पड़ता था; एक ऐसी यातना जिसे  नौकरी से निकाले जाने के डर से सभी महिलाओं को सहना पड़ता है।) जैसा कि अक्सर होता है कि जब श्रम बाजार को श्रम में हमारी भागेदारी की जरूरत और आवश्यकता होती है तब एक महिला अपने स्त्रीत्व को खोए बिना कोई भी काम कर सकती है, 'जिसका सीधा सा मतलब है कि आप चाहे जो भी करें आप हमेशा एक योनी हैं।

घरेलू काम के समाजीकरण और सामूहिकता के प्रस्ताव के संबंध मेंइन विकल्पों और हमारे दृष्टिकोण के बीच एक रेखा खींचने के लिए कुछ उदाहरण पर्याप्त होंगे। उनमें से एक बात यह है कि हम जिस तरह से डे केयर सेंटर चाहते हैंउसकी स्थापना हो और हमारी माँग है कि राज्य इसके लिए भुगतान करे। लेकिन अपने बच्चों को राज्य को सौंप कर और राज्य को उन्हें नियंत्रित करनेउन्हें अनुशासित करनेपांच घंटे के लिए नहींबल्कि पंद्रह या चौबीस घंटे के लिए अमेरिकी ध्वज का सम्मान करना सिखाने के लिए भेजना बिल्कुल दूसरी बात है। साम्यवादी रूप से जिस तरह से हम खाना चाहते हैं (स्वयंसमूहों में आदि) को खुद से व्यवस्थित करना और फिर राज्य को इसके लिए भुगतान करने के लिए कहना एक बात है और राज्य को हमारे भोजन की व्यवस्था करने के लिए कहना बिल्कुल उसके विपरीत है। जहाँ पहली स्थिति में हम अपने जीवन पर कुछ नियंत्रण हासिल कर लेंगे वहीं दूसरी स्थिति में हम अपने ऊपर राज्य के नियंत्रण का ही विस्तार कर लेंगे।

 

घरेलू काम के खिलाफ संघर्ष

घरेलू कामकाज के खिलाफ संघर्ष में कुछ महिलाएं कहती हैं कि घर के काम की मजदूरी से हमारे पतियों का हमारे प्रति नजरिया कैसे बदलेगाक्या हमारे पति एक बार हमें भुगतान करने के बाद अपने कर्तव्यों की अपेक्षा पहले से ज्यादा नहीं करेंगेलेकिन इन महिलाओं को यह नहीं दिखता कि पुरुष हमसे ज्यादा काम की उम्मीद इसलिए करते हैं क्योंकि हमें हमारे काम के लिए भुगतान नहीं किया जाता हैक्योंकि वे(पुरुष) मानते हैं कि घरेलू काम 'महिला के करने की वस्तुहैजिसमें हमें मेहनत ही नहीं करनी पड़ती है। पुरुष हमारी सेवाओं को स्वीकार करने और उनका आनंद लेने में सक्षम हैं क्योंकि वे मानते हैं कि घर का काम हमारे लिए आसान हैकि हम इसे करने में आनंद पाते हैं क्योंकि हम इसे उनके प्यार के लिए करते हैं। वे वास्तव में हमसे कृतज्ञ होने की उम्मीद करते हैं क्योंकि हमसे शादी करके या हमारे साथ रहकर उन्होंने हमें खुद को महिलाओं के रूप में व्यक्त करने का अवसर दिया है जो कि उनकी सेवा करने में हैवे कहते हैं कि ‘तुम भाग्यशाली हो कि तुम्हें मेरे जैसा पुरुष मिला है'(you are lucky you have found a man like me)। जब पुरुष हमारे काम को काम के रूप में देखेंगे और हमारे प्यार को भी काम के रूप में देखेंगे और सबसे महत्वपूर्ण दोनों को नकार सकने  के हमारे दृढ़ संकल्प को देखेंगे केवल तभी  हमारे पतियों का रवैया हमारे प्रति बदलेगा। जब सैकड़ों और हजारों महिलाएं सड़कों पर यह कह रही हों कि अंतहीन सफाईहमेशा भावनात्मक रूप से उपलब्ध रहनाअपनी नौकरी खोने के डर से हमेशा आदेश मानना बहुत कठिन और नफरत पैदा करने वाला काम हैजो हमारे जीवन को बर्बाद करता हैतब वे डरेंगे और पुरुषों के रूप में खुद को कमजोर महसूस करेंगे।

लेकिन यह सबसे अच्छी बात है जो उनके अपने दृष्टिकोण से हो सकती हैक्योंकि जिस तरह से पूंजी ने हमें विभाजित रखा है (पूंजी ने उन्हें हमारे माध्यम से और हमें उनके माध्यम से - एक दूसरे को और एक दूसरे के खिलाफ)इस बात को उजागर करके ही हम जिन्हें तथाकथित रूप से उनकी बैसाखी, दास या उनकी जंजीरों के रूप में देखा जाता है; उनकी मुक्ति की प्रक्रिया का रस्ता खोलेंगे। इस अर्थ में घरेलू काम के लिए मजदूरी की माँग हमारी बात को साबित करने में कहीं अधिक शिक्षाप्रद होगी कि हम उनकी तरह और उनके जैसा ही काम करते हैं। हम इस सार्थक प्रयास को ‘कैरियरपरस्त’ महिलाओं के लिए छोड़ देते हैंजो उत्पीड़न से बच निकलती हैं एकता और संघर्ष के बल पर नहींबल्कि मालिकों के बल परदमन (अपनी ही जैसी महिलाओं का) के बल पर।  और हमें यह साबित करने की ज़रूरत नहीं है कि हम "ब्लू कॉलर(शारीरिक श्रम करने वाले मजदूर) बैरियर को तोड़ सकते हैं"। हम में से बहुत से लोगों ने बहुत समय पहले इस बाधा को तोड़ा और यह पाया कि केवल चोगा बदलने से हमारी स्थिति में कुछ अधिक बदलाव नहीं हुआयदि बदलाव संभव हुआ तो भी बहुत कमक्योंकि इससे हमें घर और बाहर दोनों ही काम करने पड़े और जिसके कारण उनके खिलाफ संघर्ष करने के लिए हमारे पास समय और ऊर्जा कम हो गई। हमें जो चीजें साबित करनी हैंवे हैं- जो हम पहले से कर रहे हैं और जो पूंजी हमारे साथ कर रही है; उसे उजागर करने की हमारी क्षमता और उसके खिलाफ लड़ने की हमारी ताकत।

दुर्भाग्य सेकई महिलाएँ विशेष रूप से अकेली महिलाएँ (single women) घरेलू काम के लिए मजदूरी के परिप्रेक्ष्य से डरती हैं क्योंकि वे गृहिणी के रूप में एक क्षण के लिए भी पहचाने जाने से डरती हैं। वे जानती हैं कि यह समाज की सबसे शक्तिहीन स्थिति है और इसलिए वे यह महसूस नहीं करना चाहतीं कि वे गृहिणी भी हैं। यह डर खास रूप से उनकी कमजोरी हैएक ऐसी कमजोरी जो आत्म-पहचान की कमी के कारण बनती है और बनती चली आई  है। हम चाहते हैं और हमें यह कहना होगा कि हम सब गृहिणियां हैंहम सब वेश्याएं हैं और हम सब समलैंगिक हैंक्योंकि जब तक हम अपनी गुलामी को नहीं पहचानेंगे, तब तक हम गुलामी के खिलाफ अपने संघर्ष को भी नहीं पहचान सकतेक्योंकि जब तक हम सोचते रहेंगे की हम गृहणियों से कुछ अलग, कुछ बेहतर हैं तब तक हम मालिकों के ही तर्क को स्वीकार करते रहेंगेजो विभाजन का तर्क हैऔर हमारे लिए गुलामी का तर्क है। हम सब गृहणियाँ हैं क्योंकि चाहे हम जहाँ कहीं भी होंवे हमेशा हमसे कुछ और अधिक करने की अपेक्षा रखते हैं, अपनी मांगों को रखने में हमें और अधिक भय लगता हैऔर पैसों के लिए उन्हें कम फिक्र करनी पड़ती हैक्योंकि हमारे मन में हमेशा ऐसी आशा रहती है कि हमारे वर्तमान या भविष्य में कोई ऐसा आदमी है जो “हमारा ख्याल रखेगा”।

और हम यह भी भ्रम पालते हैं कि हम घरेलू  काम से बच सकते हैं। लेकिन हममें से कितने हैं जो घर से बाहर काम करने के बावजूद इससे बच निकले हैंऔर क्या हम सचमुच इतनी आसानी से एक आदमी के साथ रहने के विचार को त्याग सकते हैंक्या होगा अगर हम अपनी नौकरी खो देंजवानी(उत्पादकता) और आकर्षण(महिला उत्पादकता) जो आज हमें थोड़ी बहुत ताकत दे रहा है, उसके खो जाने और बुढ़ापा आने के बाद क्या होगा? और बच्चों का क्याक्या हमें कभी बच्चे नहीं होंगे, यहाँ तक कि उसके बारे में कोई सवाल नहीं उठा सकने का कभी पछतावा होगाऔर क्या हम समलैंगिक संबंधों को बना सकते हैंक्या हम एकाकीपन और निर्वासन की संभावित कीमत चुकाने को तैयार हैंलेकिन क्या हम पुरुषों के साथ सचमुच संबंध चला सकते हैं?

सवाल यह है कि केवल यही हमारे विकल्प क्यों हैं और किस तरह की लड़ाई हमें इनसे परे ले जा सकती है।

 

 

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