बिहार चुनाव और समाज का वित्तकरण
बिहार चुनाव और समाज का वित्तकरण बिहार इलेक्शन रिजल्ट एक बार फिर से दिखाता है कि रोजगार , अधिकार और कल्याणकारी राज्य की राजनीति अब न सिर्फ अप्रासंगिक हो गई है बल्कि वह मददगार है समाज के वित्तकरण को आगे बढ़ाने में। विरोधी पक्ष कह रहा है कि नीतीश ने १० हजार घूस देकर महिलाओं को ठग लिया। ऐसे लोगों को ये बात पल्ले नहीं पड़ती की नवउदारवादी जिंदगी (स्व) के उद्यमी (आत्म-निर्भर) नागरिक , बिहार में जिसका एक बड़ा उदाहरण ' जीविका ' है जिसने बिहार की आधे से अधिक महिलाओं की जिंदगियों को सीधे ही उद्यम बना दिया - जिंदगी जीना ही जीविका ( उद्यम) हो गया है जिसके आधार पर आपको कर्ज मिलेगा , सरकार द्वारा प्राइवेट खाते में डाली गई कोई भी राशि अब अधिकार या सोशल वेलफेयर नहीं है बल्कि या तो कर्ज है जिसको आपको सूद सहित चुकाना है या सहायता राशि है ताकि आप पिछला कर्ज चुकाने का वादा कर सकें और आगे कर्ज उठाने के काबिल बन सकें। ऐसे में कर्जदार जिंदगी (स्व) के उद्यमी को लगातार अपना क्रेडिट स्कोर ( दोनों फाइनेंशियल और सामाजिक-राजनीतिक) सुधारना पड़ेगा (वोट देना भी क्रेडिट स्कोर सुधारने का एक जरि...