संदेश

दिसंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कम्युनिज़्म का अ-व्याकरण

चित्र
                                     (यह लेख जॉन होल्वे की किताब "क्रैक कैपिटलिज्म के बंगला अनुवाद की भूमिका के लिए लिखा गया और प्रकाशित हुआ है ।) इस वक्त इस किताब का हिंदुस्तान में छपना स्वाभाविक ही लगता है। एक तरफ प्रगतिशील राज्यवादी धाराएँ फासीवाद से संघर्ष के नाम पर उदारवाद और कल्याणकारी संस्थाओं की पहरेदारी करने में लगी हैं, तो दूसरी तरफ व्यवस्था लगातार अपनी दरारों को छुपाने के लिए आपातकालिक उपायों पर निर्भर रह रही है। संकट को अवसर बनाने के फेर में बड़े संकट पैदा कर रही है। हम यह भी कह सकते हैं कि व्यवस्था अपने एक संकट का निवारण दूसरे संकट द्वारा ही कर पा रही है।   1   परंतु संकट आखिर क्या है? शायद इस किताब का सबसे महत्वपूर्ण सैद्धांतिक पहलू उस मौलिक मार्क्सवादी शिक्षा पर जोर है जिसके अनुसार पूंजीवाद का आधार मानवीय गतिविधियों का सामाजिक दृष्टि से आवश्यक श्रम काल के साथ ताल-मेल होता है। सारे संकटों का जड़ हमारा बेताल होना है। तभी तो, हॉलोवे बताते हैं, "पूंजीपति नहीं, हम संकट के कारण हैं।" आर्थिक, राजनीतिक और अन्य प्रकार के प्रबंधनात्मक विकास इसी ताल-मेल को बनाए