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हमारी एक साथी, जो हिंदी विभाग, पटना विश्विद्यालय से जुड़ी है, एम.ए की छात्रा है और पिछले कुछ समय से अपने भविष्य और अपने जीवन को लेकर ख़ुद के फैसले लेने की कोशिश कर रही है और अपने अनुसार अपने जीवन को ढालना चाह रही है । वह चाह रही है आगे पढ़ना। प्रेम करना। साथ मिल-जुल कर जीवन के निर्णय लेना। वह अभी शादी करना नहीं चाहती। वह जानती है कि शादी उसके आत्म-निर्णय की राहों को हमेशा के लिए रोक देगी। पैसे के मोल-तोल की यह मर्द वादी शादियाँ घर में भाई और पिता के जोर से चलती हैं। यही हाल है आज उसके घर का कि बड़े भाई का अहम् और पिता का वात्सल्य दोनों ही मिलजुल कर हमारी साथी के भविष्य की हत्या के हर हथकंडे अपना रही है। उसका हरासमेंट हो रहा है कई महीनों से और वह लड़ रही है। वह ना कह रही है। ना, स्पष्ट और साफ़। पर जब से उनका भाई जबरन अगले महीने किसी और लड़के से सगाई फिक्स करता है तब से स्थिति गंभीर हो उठी है। साथी को किस किस तरह के हमले और ताड़ना झेलनी पड़ रही होगी यह उन साथियों से छुपा नहीं है जो पिछले दशक से स्त्रीवादी आंदोलनों में शामिल रहे हैं। आखिर किसी के जीवन के विषय में कोई भी फैसला, बिना उसकी मर्जी के क